बच्चों को बाल मजदूरी से बचाएं।

  • 12/06/2018

आज 12 जून को बाल श्रम निषेध दिवस है। 
बाल मजदूरी के प्रति विरोध एवं जागरूकता फैलाने के मकसद से हर साल बाल श्रम निषेध दिवस 12 जून को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मनाया जाता है। वर्तमान में देश के विभिन्न क्षेत्रों में छोटे स्तर पर होटल , घरों , फैक्ट्री में काम कर अलग-अलग व्यवसाय में मजदूरी कर हजारों बाल श्रमिक अपने बचपन को तिलांजलि दे रहे हैं। जिन्हें ना तो किसी कानून की जानकारी होती है और ना ही पेट पालने का कोई और तरीका होता है । बेचारे छोटे-छोटे बच्चे अपने बचपन को भुलाकर अपने पेट की भूख मिटाने के लिए रात दिन मेहनत करके भरण पोषण करते हैं । कई बार तो देखने में आता है कि छोटे-छोटे बच्चे ऐसी जगहों पर काम करते हुए अपने नैतिक मूल्यों से भी भटक जाते हैं और वह कई गलत तरीके अपनाकर अपने जीवन के साथ खिलवाड़ करने लगते हैं। बहुत सारे बच्चे ऐसे देखने में आते है कि वे व्यसनों के जैसे अफीम, गांजा, ड्रग्स आदि खतरनाक चीजों का सेवन करके लगातार निरंतर काम करते रहते हैं और धीरे-धीरे बहुत ही गर्त में चले जाते हैं जहां से उनको वापस लाना मुश्किल हो जाता है। इसका परिणाम यह होता है कि वह खतरनाक बीमारियों से ग्रसित हो जाते हैं। कई जगह ऐसा पाया गया है कि जितने भी बच्चे बाल श्रम में लिप्त हैं वह या तो निरक्षर है या पढ़ाई छोड़ दी है । इनमें अधिकांश बच्चे बीमार पाए जाते हैं और ज्यादा से ज्यादा बच्चे नशे में लिप्त पाए जाते हैं । जिन बच्चों को हम हमारे देश की धरोहर कहते हैं । भविष्य के कर्णधार कहते हैं आज वही बच्चे किस ओर जा रहे हैं ये चिंतन का विषय है । इसलिए आज के दिन हमारे आसपास अगर हमें बाल श्रम करते हुए बच्चे देखें तो हम सब का फर्ज है कि हम बाल श्रम कराने वाले को भी रोके और बाल श्रम करने वालों को भी रोके। हम सब से जितना हो सके ऐसे बच्चों की मदद करें और उनको सही मार्गदर्शन दें। क्योंकि सच में बच्चे ईश्वर का रूप कहे जाते हैं आता अगर हम सबके मन में ईश्वर के प्रति सम्मान और प्यार की भावना है तो उनके रूप अर्थात बच्चों के प्रति भी हम सम्मान और प्यार की भावना को जागृत करें नहीं तो यह बाल मजदूरी हम सब के लिए एक अभिशाप बन जाएगी। गरीब माता-पिता को अपने बच्चों की शिक्षा पर ध्यान देना चाहिए क्योंकि आज सरकार शिक्षा, खाना, और दवाइयां स्कूलों में मुफ्त में उपलब्ध करा रही हैं। बस जरूरत है कि है हम लोग ऐसे ग़रीब माता पिता को इन सभी जानकारियों के प्रति जागरूक करें। कई बार तो देखने में आता है कि दुकानदार या व्यापारी या कारखाने वाले लोग छोटे बच्चों से बड़े लोगों जितना काम करवाते हैं और उन्हें दाम भी आधा देते हैं । बच्चे ज्यादा समझदार नहीं होते हैं इसलिए उनसे बहुत मेहनत कराते हैं । अब समय आ गया कि हम सब को जल्दी से जल्दी जागरुक होना होगा कि बच्चों से मजदूरी नहीं करवाएंगे और किसी को अगर करवाते हुए देखेंगे तो उन्हें बाल मजदूरी के लिए सरकार की ओर से जो मजबूत तथा कड़े कानून बने हैं वह उन्हें याद दिलाने होंगे जिससे उनके मन में खौफ पैदा हो जिस से वे आगे से बाल श्रम नही करवाएंगे। हमारे देश में अक्सर बाल मजदूरी के खिलाफ आवाज उठाई जाती है। कहां जाता है "अभी करनी हमको पढ़ाई मत करवाओ हम से कमाई " जैसे नारे लगाए जाते हैं उसके बावजूद भी बाल मजदूरी हमारे देश क्या बल्कि पूरी दुनिया के लिए समस्या बनती जा रही है। कम से कम हम लोग व्यक्तिगत स्तर पर बाल मजदूरी रोकने में जितना अपना सहयोग दे सकते हैं सहयोग अवश्य दें और बच्चों को बाल मजदूरी से बचाएं।ऐसी शुभ आशा के साथ....... Thanks 
Om shanti... BK Dr. Reena

इस निर्मम विकृति के खिलाफ कौन खड़ा होगा?

  • 07/01/2018

इस निर्मम विकृति के खिलाफ कौन खड़ा होगा?
जीवन भर अहिंसा परमोधर्म: के लिए जूझते रहे महात्मा गांधी की धरा पर राजकोट के प्रोफेसर संदीप का कृत्य मनो मस्तिष्क को झकझोर कर रख देने वाला हादसा है। संदीप ने पुलिस को दिए अपने बयानों में स्वीकार किया है कि मां और पत्नी के आपसी झगड़ों से वह इतना तंग आ गया था कि, उसने ब्रेन हेमरेज की वजह से लाचार अपनी मां को जो एक टीचर थीं ,चौथी मंजिल से धक्का देकर मार डाला था । सवाल उठता है कि क्या सभ्य समाज मे मानवीय रिश्ते इतने संकीर्ण हो रहे हैं कि पुत्र के घर में इतनी भी जगह नहीं कि बीमार और अशक्त मां की परवरिश हो सके।अफसोस तो यह है कि ह्दयहीनता उस बेटे ने दिखाई जो खुद प्रोफेसर है।दरअसल जीवन की आपाधापी में मानवीय मूल्य निरंतर तिरोहित होते जा रहे हैं और रिश्ते-नाते भी अपना अर्थ खो रहे हैं। यह एक ऐसा हादसा था जो घटना के महीनों बाद प्रकट हो गया, लेकिन सैकड़ों ऐसे घर ढूढ़े जा सकते हैं जहां इस तरह के रिश्तों को तिल-तिल कर यातना सहते हुए दम तोडऩा पड़ता है। अफसोस की इस कृत्य में नेपथ्य से संदीप की पत्नी ने भी भागीदारी निभाई ।वह अपराध में बराबर की भागीदार रही उसने ऐसेहालात बनाए की संदीप ने निर्मम अपराध से अपने हाथ रंग लिए ।स्त्रियाँ चाहें तो घर को काशी –काबा वृन्दावन बना सकती हैं और नरक में भी बदल सकतीं हैं। संदीप की पत्नी ने क्या किया यह उसके स्वयं के सोचने का विषय है लेकिन सामाजिक जीवन को निरंतर ग्रस रही इस निर्मम आपराधिक विकृति के खिलाफ कौन खड़ा होगा? सामाजिक प्राणी के रूप में आखिरकार हम सबकी भी तो कोई जिम्मेदारी बनती है। तो आइए नए वर्ष में हम सब शुभ संकल्प करें अपने बड़े बुजुर्गों को प्यार और सम्मान दें, उनका पूरा पूरा ख्याल रखें ,उन्हें भी आपका समय और साथ चाहिए इस बात का पूरा ध्यान दें । उनकी सेवा कर दुआओं के पात्र बने।
ओम शांतिःःःःःःःःः

  • 15/05/2018

कहां रह गई उस मासूम की परवरिश में कमी?

  • 12/01/2018

कहां रह गई उस मासूम 
की परवरिश में कमी?
थाने में सामने खड़े माँ-बाप के साथ जाने से उस मासूम बच्ची ने जिस तरह इनकार किया वह हमें हैरान करने वाला था। यह बच्ची हमे ब्रह्माकुमारीज़ भोपाल के रोहित नगर सेंटर में रोती-बिसुरती, अल्प कपड़ों में ठंड से कंपकंपाती कल मिली थी। उसे इस हाल में पाकर हम हैरान थे।आखिर कौन थी वह बच्ची? किसी हादसे का शिकार तो नहीं हो गई थी?कैसे थे उसके माँ-बाप जो उससे बेखबर बने हुए थे । मैंने और सेंटर की बहनों ने उसे खूब दिलासा दी पर वह अपने बारे में कुछ भी बता नहीं पा रही थी। हम उसे लेकर आसपास के इलाकों में उसके माँ-बाप की तलाश में घंटों घूमे लेकिन कहीं कुछ पता नहीं लगा तब थक हार कर हम शाहपुरा थाने पहुंचे। यहाँ मैंने पुलिस इंस्पेक्टर जितेंद्र सिंह से आग्रह किया कि जब तक बच्ची के घरवाले नहीं मिल जाते उसे हमारे सेंटर में हमारी देखभाल में ही रहने दें, बहनें उसकी तब तक देखभाल कर लेंगी जब तक कोई मिल नहीं जाता । पुलिस सहमत हो गई। हम छह साल की बच्ची को अपने सेंटर में ले तो आए लेकिन उसे लेकर हमारी चिंताएं और शंकाएं कम नहीं हो रही थीं, अगर बच्ची के घरवाले नहीं मिले तो क्या होगा? हमने तय किया कन्या है अपने साथ रखकर परवरिश करेंगे। लेकिन ऐसी नौबत नहीं आई रात को थाने से खबर आ गई कि बच्ची के माँ-बाप मिल गए हैं लेकिन फिर हमारे सामने सबसे बड़ा सवाल यही था कि बच्ची माँ-बाप के साथ जाने को तैयार नहीं थी पुलिस का कहना था की उसे माँ – बाप के साथ भेजना ही ठीक होगा घंटों मनाकर हमने उसे माँ-बाप के साथ भिजवा तो दिया पर यह सवाल यथावत है कि बच्ची की परवरिश में आखिर कहां कमी रह गई जिसकी वजह से वह अपने माँ-बाप से इस नाजुक उम्र में ही दूरी बनाने लगी है, संतान को जन्म देना ही काफी नही होता उसकी परवरिश भी मायने रखती है। कहीं न कहीं, कोई न कोई बात तो है? जिसने उस बच्ची के बचपन को प्रभावित करना शुरू कर दिया है । उस पर अभी से ध्यान देना होगा। खैर हम सब बहनों ने भगवान को धन्यवाद दिया कि उस कन्या को उसके माता- पिता से मिला दिया।
om shanti.......

बाल अधिकार दिवस

  • 14/11/2017

20 नवंबर को पूरे विश्व में वैश्विक बाल दिवस मनाया जाता है। बाल अधिकारों के अनुसार बच्चों के बचपन अर्थात उनके शारीरिक एवं मानसिक परिपक्वता के दौरान बच्चों की कानूनी सुरक्षा, देखभाल और संरक्षण करना नितांत आवश्यक है । बाल अधिकार बाल श्रम , बाल दुर्व्यवहार और बाल हिंसा के विरोध में है। बच्चों के क्या क्या अधिकार है यह बात बच्चों से ज्यादा बड़ों को जानना जरूरी है। यूं तो बड़े अपने सभी मौलिक अधिकारों के प्रति सदैव जागरूक रहते हैं और यदि कोई उनके अधिकारों का थोड़ा भी हनन करते हैं तो वह आवाज उठाते हैं । पर बच्चों के अधिकारों के साथ भी हनन लगातार हो रहा है इस पर चिंतन करने की आवश्यकता है। बच्चों के क्या विशेष अधिकार हैं इसकी जानकारी बहुत कम अभिभावकों को है। वर्तमान समय अभिभावको की पूरी कोशिश होती है कि उनके बच्चों को अच्छी शिक्षा, स्वास्थ्य , सुरक्षा ,खेल, मनोरंजन ,सात्विक भोजन ,शुद्ध विचार, सकारात्मक प्रोत्साहन, हर तरह की सुख सुविधा आदि सब कुछ प्राप्त हो। सभी पालक अपने बच्चों को अच्छे संस्कार देकर संस्कारवान बनाना चाहते है।
परंतु अभी हाल में ही हुए गुरुग्राम रेयान इंटरनेशनल स्कूल प्रकरण पर नजर डालते हैं जहां एक मासूम बच्चे को उसी स्कूल में पढ़ने वाला सीनियर सहपाठी महज इसलिए मार डालता है ताकि परीक्षा टलवा सके क्योंकि अभी उसकी तैयारी नहीं हुई थी। इस घटना के बाद शायद मैं क्या बल्कि पूरा देश सोचने को मजबूर हो गया है कि आखिर हमारे बच्चों की मानसिकता क्या होती जा रही है ? वह किस सोच के साथ आगे बढ़ रहे हैं ? आखिर ये किस तरह के संस्कार हैं? बच्चों के जहन में दया, करुणा, प्रेम, दूसरों के प्रति सम्मान, आदर जैसे भाव भरने के बजाए अपराध, सनकीपन, जिद और हिंसक जुनून के संस्कार क्यों भर रहे हैं ? मुझे लगता है यह हर अभिभावक की जिम्मेवारी है कि वह अपने बच्चों को बाल अधिकार के प्रति जागृत करने के साथ साथ ऐसी परवरिश दें जिसमें संस्कार हो , संस्कृति के प्रति सम्मान हो, उसे अच्छे बुरे का फर्क पता हो । बच्चों के लिए कुछ आध्यात्मिक ज्ञान, नैतिक ज्ञान या बुद्धि की एकाग्रता, व्यवहार में सरलता लाने हेतु मेडिटेशन जैसे माध्यम का सहारा लेना नितांत जरूरी है । अभिभावक यदि बच्चों को संस्कारवान बनाने का संकल्प लेते हैं तभी स्वस्थ और विचारवान पीढ़ी का निर्माण हो सकता है। बाल अधिकार दिवस सिर्फ नारों जयकारों या कुछ विशेष आयोजनों तक सीमित नहीं रहे बल्कि कुछ कर गुजरने का संकल्प भी लिए जाए। ओम शांति....