इस निर्मम विकृति के खिलाफ कौन खड़ा होगा?
इस निर्मम विकृति के खिलाफ कौन खड़ा होगा?
जीवन भर अहिंसा परमोधर्म: के लिए जूझते रहे महात्मा गांधी की धरा पर राजकोट के प्रोफेसर संदीप का कृत्य मनो मस्तिष्क को झकझोर कर रख देने वाला हादसा है। संदीप ने पुलिस को दिए अपने बयानों में स्वीकार किया है कि मां और पत्नी के आपसी झगड़ों से वह इतना तंग आ गया था कि, उसने ब्रेन हेमरेज की वजह से लाचार अपनी मां को जो एक टीचर थीं ,चौथी मंजिल से धक्का देकर मार डाला था । सवाल उठता है कि क्या सभ्य समाज मे मानवीय रिश्ते इतने संकीर्ण हो रहे हैं कि पुत्र के घर में इतनी भी जगह नहीं कि बीमार और अशक्त मां की परवरिश हो सके।अफसोस तो यह है कि ह्दयहीनता उस बेटे ने दिखाई जो खुद प्रोफेसर है।दरअसल जीवन की आपाधापी में मानवीय मूल्य निरंतर तिरोहित होते जा रहे हैं और रिश्ते-नाते भी अपना अर्थ खो रहे हैं। यह एक ऐसा हादसा था जो घटना के महीनों बाद प्रकट हो गया, लेकिन सैकड़ों ऐसे घर ढूढ़े जा सकते हैं जहां इस तरह के रिश्तों को तिल-तिल कर यातना सहते हुए दम तोडऩा पड़ता है। अफसोस की इस कृत्य में नेपथ्य से संदीप की पत्नी ने भी भागीदारी निभाई ।वह अपराध में बराबर की भागीदार रही उसने ऐसेहालात बनाए की संदीप ने निर्मम अपराध से अपने हाथ रंग लिए ।स्त्रियाँ चाहें तो घर को काशी –काबा वृन्दावन बना सकती हैं और नरक में भी बदल सकतीं हैं। संदीप की पत्नी ने क्या किया यह उसके स्वयं के सोचने का विषय है लेकिन सामाजिक जीवन को निरंतर ग्रस रही इस निर्मम आपराधिक विकृति के खिलाफ कौन खड़ा होगा? सामाजिक प्राणी के रूप में आखिरकार हम सबकी भी तो कोई जिम्मेदारी बनती है। तो आइए नए वर्ष में हम सब शुभ संकल्प करें अपने बड़े बुजुर्गों को प्यार और सम्मान दें, उनका पूरा पूरा ख्याल रखें ,उन्हें भी आपका समय और साथ चाहिए इस बात का पूरा ध्यान दें । उनकी सेवा कर दुआओं के पात्र बने।
ओम शांतिःःःःःःःःः